
जशपुर। जिले में प्रशासनिक अव्यवस्था और विभागों की मनमानी एक बार फिर सुर्खियों में है। पत्रकार पिता मुकेश नायक को अपने नवजात शिशु के शव को घर ले जाने के लिए शव वाहन तक उपलब्ध न होना प्रशासन की संवेदनहीनता का ऐसा उदाहरण बन गया, जिसने जशपुर की पत्रकारिता और जनता दोनों को झकझोर दिया है।
पत्रकार मुकेश नायक ने बताया कि वह अपनी पत्नी को जच्चकि हेतु सुंदरगढ़ लेकर के गया जहां उनकी पत्नी ने एक लड़के को जन्म दिया, जन्म के 2 घंटे बाद ही नवजात शिशु की मृत्यु हो गई। नवजात मृत बच्चे के पिता मुकेश नायक ने आगे बताया कि घटना के दिन संबंधित विभाग को बार-बार संपर्क किया, लेकिन उन्हें न सही जानकारी मिली, न वाहन। लगातार आश्वासन, टालमटोल और अनुत्तरदायित्व की स्थिति ने उन्हें और उनके परिवार को अपार मानसिक पीड़ा दी। सीमावर्ती क्षेत्र में ओडिशा प्रशासन की मदद मिली, जबकि छत्तीसगढ़ की 102 सेवा ने मदद से मना कर दिया। अंततः मजबूर होकर नवजात का शव स्कूटी पर रखकर घर लाना पड़ा। यह घटना न केवल अमानवीय है, बल्कि जिले की स्वास्थ्य एवं प्रशासनिक व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करती है।
इस संवेदनशील मामले को उठाए जाने के बाद विभागों की प्रतिक्रिया और भी विचलित करने वाली रही। जिम्मेदारी स्वीकारने और समस्या का समाधान ढूंढने की बजाय कई विभागों ने नोटिस, कानूनी कार्रवाई और मानहानि के दावों की धमकियों का रास्ता अपना लिया। खबरों पर तुरंत खंडन जारी कर पत्रकारों को डराने का प्रयास किया गया, जैसे सच को दबाना ही समाधान हो।
इसी दमनकारी और गैर-जिम्मेदार रवैये के खिलाफ अब जिले के पत्रकार एकजुट हो गए हैं। नोटिस और दबाव की इस नीति का विरोध करते हुए जिले के लगभग तीन दर्जन से अधिक पत्रकारों ने प्रशासन के अधिकारिक व्हाट्सऐप ग्रुप से सामूहिक रूप से बाहर हो गए। इनमें कई वरिष्ठ, अनुभवी और जिले की बड़ी खबरों को कवर करने वाले पत्रकार शामिल हैं। पत्रकारों ने यह कदम सीधे तौर पर विभागों को संदेश देने के लिए उठाया कि वे धमकी, दबाव और नोटिस की राजनीति को अब स्वीकार नहीं करेंगे।
पत्रकारों ने कहा कि सवाल उठाना, गलतियों को उजागर करना और जनता के हित के मुद्दों को सामने लाना उनका कर्तव्य है। किसी भी विभाग की कमी को दिखाना मानहानि नहीं, बल्कि लोकतंत्र की रक्षा है। यदि एक पत्रकार पिता को अपने नवजात के शव के साथ ऐसी त्रासदी झेलनी पड़ती है, तो आम जनता की स्थिति की कल्पना मात्र ही भयावह है।
पत्रकारों का आरोप है कि कुछ विभाग सच से बचने और अपनी लापरवाही के लिए जिम्मेदारी लेने के बजाय उल्टा मीडिया को दबाने का प्रयास कर रहे हैं। लगातार नोटिस भेजना, खंडन जारी करना और कानूनी डर दिखाना लोकतांत्रिक अधिकारों को कमजोर करने वाली प्रवृत्ति है।
पत्रकारों ने स्पष्ट कहा अब अन्याय बर्दाश्त नहीं होगा। नोटिस और दबाव से पत्रकारिता नहीं रुकेगी। सिस्टम की गलती उजागर करना अपराध नहीं यह जनता के प्रति जिम्मेदारी है।














